आखिर गौतम बुद्ध नगर का किसान और बेरोजगार किस राजनीतिक दल पर करें भरोसा

प्रदेश में विभिन्न सरकारों का रहा आवागमन लेकिन समस्याएं जस की तस


इस देश से मुगल और अंग्रेज साम्राज्य भले ही खत्म हो गया हो लेकिन उसकी छाप अभी भी कई सरकारी महकमों में साफ नजर आती है। गौतम बुद्ध नगर के तीनों औद्योगिक प्राधिकरण भी तत्कालीन मुगल और अंग्रेज शासकों की यादें आज भी ताजा कर रहे हैं। मुगल शासकों और अंग्रेजों की भांति तीनों ही प्राधिकरणों ने यहां के किसानों की बेशकीमती जमीनों को कौड़ियों के भाव लूटा है और आज जब किसान अपने वाजिब हकों की मांग करता है तो अंग्रेज शासन काल की तरह उसे लाठियां खानी पड़ती है और जेलों की सलाखों के पीछे भेज दिया जाता है।

वाह रे आजाद भारत ! इस देश में आज भी सबसे दयनीय स्थिति उसी जवान, किसान और मजदूर की है जिस जय जवान, जय किसान, जय मजदूर का चुनाव में नारा लगाकर राजनीतिक दल सत्तासीन हो जाते हैं। किसानों के लिए बने नए भूमि अधिग्रहण बिल को गौतम बुद्ध नगर के प्राधिकरणों में लागू न करने को अंग्रेजशाही और लूट नही कहा जाए तो क्या कहा जाए ? अर्जित भूमि के सापेक्ष किसानों को आबंटित होने वाले आबादी भूखन्डों से लेकर 64.7% मुआवजा वृद्धि जैसी जायज मांगों पर चुप्पी लगाना और गांधीवादी तरीके से आंदोलन करने वाले किसानों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने को सरकारों की मनमानी और तानाशाही नहीं तो क्या कहा जाए ?

गौतम बुद्ध नगर के किसानों के साथ ज्यादती करने की यह तोहमत किसी दल विशेष की सरकार पर ही नहीं बल्कि सभी सरकारों का हाले बयां कुछ ऐसा ही रहा है। भले ही विभिन्न दलों के राजनेता इस बात की दलील देते नजर आते हैं कि कुछ राजनीतिक दलों की सरकारों ने गौतम बुद्ध नगर को विधायक, सांसद और मंत्री के रूप में अधिक राजनीतिक भागीदारी दी है लेकिन सच्चाई तो यह है कि राजनीतिक दलों द्वारा जातीय समीकरण साधने के लिए ऐसी लाल बत्ती नवाजने का कोई विशेष फायदा समाज और क्षेत्र को सार्वजनिक रूप से नहीं पहुंचा। शायद इन विषम परिस्थितियों की वजह से ही गौतम बुद्ध नगर के लोगों ने रोजी रोजगार के संरक्षण के लिए प्रदेश के हर उस दल का दामन थामने का मन बना लिया जो भी प्रदेश में सत्ता सीन होते रहे हैं।

हांलांकि आज के परिवेश में दबाव की राजनीति के फॉर्मूले और सत्ता में भागीदारी प्राप्त करने की दृष्टि से यह तरीका कतई कारगर प्रतीत नहीं होता लेकिन विभिन्न दलों की सरकारों में किसान और बेरोजगार युवाओं के प्रति उदासीनता के कारण उठ चुके भरोसे ने रोजमर्रा का काम निकालने के लिए शायद ऐसा करने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया है। अगर नजर डालें तो पिछले ढाई दशक से किसानों और बेरोजगार युवाओं के प्रति किसी भी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल की मानसिकता और विचारधारा में कोई खास अंतर नजर नहीं आया तभी तो गौतम बुद्ध नगर के 288 गांवों में पंचायत चुनाव पुनर्गठन की उठती मांग के बाद भी कोई राजनैतिक दल चुनाव कराने के पक्ष में घोषणा करने के लिए तैयार नहीं है। हालांकि हर जनपद और हर क्षेत्र के मुद्दे भिन्न हो सकते हैं लेकिन अगर हम जनपद गौतम बुद्ध नगर के स्थानीय मुद्दों के परिपेक्ष्य में ही बात करें तो यहां बेरोजगार युवकों को स्थानीय उद्योगों में रोजगार देना और प्राधिकरणों से संबंधित किसानों की समस्याएं मुख्य मुद्दा है।

इन मुद्दों के निस्तारण पर अगर वर्तमान से लेकर अतीत तक फोकस करें तो किसी भी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल को इन मुद्दों के निस्तारण में दिलचस्पी के लिए क्लीन चिट नहीं दी जा सकती। जहां एक तरफ किसानों की जमीनों पर बसे नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण तमाम सुविधाएं दिखाकर देश विदेश के इन्वेस्टर्स को लुभाते रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ इन प्राधिकरणों में व्याप्त भ्रष्टाचार, बड़े-बड़े घोटालों और विकास की दृष्टि से गांवों की अनदेखी से गांव स्लम बस्ती में तब्दील होते नजर आ रहे हैं। भले ही राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा अपनी अपनी सरकारों की उपलब्धियां गिनाना उनकी मजबूरी है लेकिन धरातल की सच्चाई से सभी वाफिक हैं। इसीलिए तो गौतम बुद्ध नगर का किसान और बेरोजगार इस दुविधा में है कि आखिर भरोसा करें तो किस दल पर करें। शायद यही विश्वास और भरोसा उठने के बाद लोगों ने सत्तासीन सरकारों का सुख भोगने का निर्णय कर लिया है। हालांकि गौतम बुद्ध नगर के लोगों के इस निर्णय को देश के अन्य क्षेत्र एवं राज्यों में राजनीतिक नासमझी की संज्ञा दी जाती रही है लेकिन असल सच्चाई से मुंह नही मोडा जा सकता। अब देखना यह होगा कि भविष्य में कौन से राजनीतिक दल गौतम बुद्ध नगर में पंचायत चुनाव कराने एवं किसान और बेरोजगारों की समस्याओं का निस्तारण करने की घोषणा करके यहां के किसान और बेरोजगारों का भरोसा और विश्वास जीतने में कामयाब होंगे। यह बात जरूर है कि दूसरे क्षेत्रों के लोगों द्वारा राजनीतिक नासमझी के ताने सुनने के बजाय इस बार युवाओं के जोश और बुजुर्गों की समझदारी से यहां की राजनीति को जरूर कोई नई दिशा और दशा मिलने की संभावना जताई जा रही है।

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कर्मवीर नागर (प्रमुख)
समाजसेवी – गौतम बुद्ध नगर

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