पायरिया से बचने के लिए दांतों के प्रति सचेत रहना क्यों जरूरी

हाल ही में एक चिकित्सा शिविर में भाग लेने के बाद ऐसा लगा कि दंत समस्याओं का बोलबाला है। गाजियाबाद और नोएडा के लोगों के दंत चिकित्सक का अवलोकन करते हुए मैंने देखा कि रोगियों के दांतों में कैल्शियम या टार्टर जमा था, इससे भी चिंताजनक उनके दांतों पर पीले या भूरे छल्ले थे। इसमें पांच वर्ष के उम्र के भी मरीज थे। केविटी, टार्टर एवं मौखिक स्वच्छता की कमी आपको पायरिया के प्रति संवेदनशील बनाती है। समृद्ध तथा वंचित समुदायों के शिविरों का हिस्सा होने के नाते मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची कि खराब दंत का आर्थिक और सामाजिक सीमाओं से कोई लेना-देना नहीं है।

पायरिया एक दीर्घकालिक रोग है। पेरिओडोंटाइटिस के रूप में भी जाना जाने वाला पायरिया मसूड़ों की सूजन का एक गंभीर रूप है बल्कि सरल शब्दों में पेरिओडोंटल संरचनाओं की सूजन है।

लक्षण :-

पायरिया को जानने के लिए शायद यह जानना जरूरी है कि स्वस्थ मसूड़े कैसे होते हैं। ये गुलाबी रंग के मजबूत मसूड़े होते हैं जिसमें ब्रश करने के दौरान रक्तस्राव नहीं होता परंतु पायरिया से ग्रसित मसूड़े लाल, सूजन वाले, कमजोर तथा दुर्गन्ध वाले होते हैं। वे अधिक ठंडा तथा गर्म खाद्य पदार्थों के प्रति संवेदनशील होते हैं और इसमें दांतों एवं मसूड़ों के बीच पस पड़ जाता है।

विशेषज्ञ के विचार :-

डा. कमल अग्रवाल एक जाने-माने दंत शल्य चिकित्सक से साक्षात्कार में मैंने पूछा कि कुछ इलाकों में पायरिया इतना आम क्यों है तो उन्होंने कहा कि यह ज्यादातर तीसरी दुनिया के देशों में आम है। जहां साक्षरता दर कम है। भारत में मौखिक स्वच्छता का अभाव है क्योंकि बहुत से लोग ब्रश नहीं करते हैं। इस मानसिकता को विकसित करने की जरूरत है। क्योंकि डा. अग्रवाल का दावा है कि पायरिया के लक्षण भयावह लगते हैं लेकिन इनका एक सरल समाधान है कि उचित स्वच्छता बनाए रखना। जिसमें अंतिम भोजन के बाद ब्रश करना तथा फ्लोसिंग करना शामिल है। यदि आप पायरिया से पीड़ित हैं तो इसका इलाज संभव है तथा इसका उपचार लगभग 3000 रूपए में हो जाता है हालांकि सरकार नि:शुल्क पेशकस कर सकती है। डा. अग्रवाल के अनुसार उपचार के दो विकल्प हैं- सर्जिकल और नॉन सर्जिकल।
पायरिया जीवाणु जनित रोग के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। यह तब होता है जब मुंह में बहुत अधिक बैक्टीरिया जमा हो जाते हैं। यह बैक्टीरिया बचे हुए भोजन के कणों और लार के साथ मिलकर एक चिपचिपी पीली परत बनाते हैं। जिसे प्लाक कहते हें जब यह सख्त हो जाता है तो टार्टर कहलाता है। मवाद दांतों को पीला करने में योगदान देता है। तभी पेनोडोंटल पाकट्स भी बनने लग सकते हैं जो मसूड़ों और दांत के बीच की जगह होती है। कुल मिलाकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि पायरिया से बचने के लिए दांतों व मुंह को साफ रखना आवश्यक है।


लेखिका
सियोना जैन

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