
लखनऊ। केन्द्र और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बार-बार निर्देश देने के बावजूद बंदर और मानव के संघर्ष की बढ़ती घटनाओं तथा लगातार हो रही मौतों और हमलों पर कार्ययोजना प्रस्तुत न करने पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि संबंधित एजेंसियों द्वारा दिखाई जा रही असहायता स्वीकार नहीं की जा सकती।
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने यह टिप्पणी तब की जब राज्य सरकार ने बताया कि राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की स्थायी समिति ने बंदरों को पुनः वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची–II में शामिल करने की सिफ़ारिश की है तथा राज्यों को विस्तृत, स्थल- विशिष्ट कार्ययोजना बनाने का निर्देश दिया है। जब इस मामले पर राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि NBWL ने कुछ सिफ़ारिशें की हैं तो न्यायालय ने कड़े शब्दों में कहा की यह क्या है? इससे आम आदमी को क्या राहत मिलेगी? लोगों पर हो रहे हमले कैसे कम होंगे? पूरा राज्य पीड़ित है और आप कह रहे हैं कि आप असहाय हैं। हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते। कोर्ट ने 31अक्टूबर 2025 को राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर प्राथमिकता के साथ कार्ययोजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं विनीत शर्मा (भाजपा नेता व सामाजिक कार्यकर्ता) तथा प्राजक्ता सिंघल की ओर से अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ और पवन तिवारी उपस्थित हुए। जिन्होंने एक ओर जनता की बढ़ती परेशानियों और दूसरी ओर बंदरों को भोजन न मिलने के कारण भूख व कुपोषण की समस्याओं पर प्रकाश डाला।

याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रस्तुत करते हुए अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने कहा की यह आश्चर्यजनक है कि AWBI कहता है कि उसका इस मामले में कोई रोल नहीं है, जबकि वह केंद्र सरकार का सर्वोच्च सलाहकारी निकाय है और प्रिवेंशन ऑफ़ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट, 1960 के तहत उसके महत्वपूर्ण दायित्व हैं। सरकार को दी जाने वाली सलाह मौखिक नहीं, बल्कि सुविचारित लिखित राय होती है। अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने न्यायालय को जानकारी देते हुए बताया की केवल प्रयागराज में ही रोज़ 25 से अधिक लोग बंदरों द्वारा काटे जा रहे हैं। गाज़ियाबाद में एक दीवार गिरने से एक महिला की मौत हो गई और कई लोग घायल हुए। पूरे राज्य में कृषि नष्ट हो रही है। स्कूल बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और कुछ भी नहीं किया जा रहा।
18.09.2025 को हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव (शहरी विकास), उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि नगर निकाय अपनी जिम्मेदारियाँ उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1959 और नगरपालिकाएँ अधिनियम, 1916 के तहत कैसे निभा रहे हैं, उसके बारे में जानकारी दें। 06.05.2025 को हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार तथा उनकी एजेंसियों से पूछा था कि बंदर-उपद्रव से निपटने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं और क्या कार्ययोजना प्रस्तावित है। साथ ही AWBI, पर्यावरण मंत्रालय, यूपी सरकार, यूपी राज्य पशु कल्याण बोर्ड, डीएम गाज़ियाबाद, गाज़ियाबाद नगर निगम, लोनी, मोदीनगर, मुरादनगर, खोड़ा मakanpur के नगर निकायों, SPCA और GDA को नोटिस जारी किए थे।
याचिका में बंदरों की बढ़ती आबादी, मानव-वन्यजीव संघर्ष, बंदरों में भूख और भोजन की कमी, तथा उनके अमानवीय और दयनीय हालात पर ध्यान आकर्षित किया गया है।

कोर्ट को बताया गया कि AWBI, जो केंद्र सरकार का सर्वोच्च सलाहकार निकाय है, इस मुद्दे पर वैधानिक रूप से कदम उठाने के लिए बाध्य है।
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मानव अधिकारों और पशुओं के अधिकारों—विशेषकर भोजन, भूख से मुक्ति आदि—के बीच संतुलन स्थापित करने की मांग की गई है। अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 13.01.2026 निर्धारित की है।
वरिष्ठ पत्रकार श्री राम की रिपोर्ट


