स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती पर विशेष

समाज की अंतःचेतना जागृति के अग्रदूत स्वामी दयानन्द सरस्वती

ग़ाज़ियाबाद। दयानन्द सरस्वती का एक बहुत ही प्रशंसनीय कार्य था – आर्य समाज की स्थापना। समय के साथ चलते हुए और शिक्षा के क्षेत्र में काम करके राष्ट्रीयता की प्रबल भावना का प्रसार करते हुए आर्य समाज आधुनिक भारत में एक बहुत बड़ी जीवंत शक्ति बन गया है। स्वामी दयानन्द ने भारत की तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रणालियों की समस्याओं का जो समाधान प्रस्तुत किया, उससे उन्होंने आधुनिक चिंतन की आधारशिला रखी। अपने अनूठे कार्यों के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती युवा पीढ़ी में हमेशा याद किये जाते रहेंगे।

मानव कल्याण के लिये सर्वस्व त्याग देने वाली महान विभूति जिनका नाम स्वामी दयानन्द सरस्वती है निश्चय ही भारतीय पुनर्जागरण काल के महान व्यक्तित्व थे। इस महान आत्मा ने अपने जीवनकाल में करोड़ों भारतवासियों के मन से अज्ञानता का अंधेरा हटाने और पुरोहितों व पण्डितों द्वारा अंधविश्वास एवं अनेकानेक आडम्बरों की मैली चादर को हटाने का एक महान कार्य किया। आज भी उनके द्वारा किये गये कार्यों को आर्य समाज के जरिये जन-जन तक पहुँचाया जा रहा है और यह कार्य निरन्तर जारी है। स्वामी दयानन्द ने अपने जीवन में वैसे तो बहुत से कार्य जन-कल्याण के लिये किये लेकिन उनका जो मुख्य कार्य था वह भारतवासियों की राजनीतिक पराधीनता को समाप्त करना एवं जो राष्ट्रविरोधी ताकतें हमारे भारतवर्ष पर अपना शिकंजा कसती जा रही थीं, उनसे देश वासियों को मुक्त कराना था। वह भारतवर्ष का नवनिर्माण कर सभी क्षेत्रों का विकास करना चाहते थे। वे जानते थे कि भारतवासियों में अपनी संस्कृति के प्रति बहुत आस्था है लेकिन अंग्रेजों ने उनपर पाश्चात्य सभ्यता को अनावश्यक रूप से थोप रखा है।

दयानन्द शायद पहले भारतवासी थे जिन्होंने इसका खुलकर विरोध किया। उस समय जब अंग्रेजों का आधिपत्य था और देश में उन्हीं की बातों को सर्वोपरि रखा जाता था, स्वामी दयानन्द सरस्वती एक अकेले ऐसे व्यक्ति थे जिनकी विचारधारा इस पाश्चात्य प्रलोभनों से परे थी। उन्होंने इन विचारधाराओं का विरोध किया। दयानन्द सरस्वती के बारे में अरविन्द घोष ने लिखा है कि भारतीय नवजागरण के नेताओं में एक नेता ऐसा है, जो अपनी विशेषताओं के कारण अलग दिखाई पड़ता है। उसका काम करने का ढ़ंग सबसे निराला है। ठीक उसी प्रकार जैसे पहाड़ी श्रृंखला में दूर तक जाने पर कोई व्यक्ति सामने ऊँची-नीची चोटियाँ देखता है और सभी चोटियां हरीतिमा से आच्छादित बड़ी ही सुहावनी प्रतीत होती हैं लेकिन इन तमाम पहाड़ियों के बीच उसे एक ऐसी प्रस्तर पहाड़ी नजर आती है जिसकी चोटी नीले आकाश को बेधती हुई दिखाई पड़ती है। जिसके शिखर पर एक अकेला चीड़ का वृक्ष है। इस पहाड़ी से गिरता है जल का प्रपात, जो घाटियों को जीवन और स्वास्थ्य प्रदान करता है। दयानन्द मेरे मन में ऐसी ही छवि उभारते हैं।
दयानन्द एक महान योगी, क्रांतिकारी समाज सुधारक, दार्शनिक, राजनीतिक चिंतक और धार्मिक योद्धा थे। एक क्रांतिकारक सुधारक के रूप में उन्होंने मूर्तिपूजा, अस्पृश्यता, बाल विवाह और सतीप्रथा के विरुद्ध अथक संघर्ष किया।

मूर्तिपूजा का विरोध करते हुए स्वामी दयानन्द ने कहा कि ब्रह्म निराकार है और ईश्वर सर्वव्यापी है। वह अजन्मा है और शक्तिमान है। अतः उसे किसी रूप में ढालकर उसकी पूजा न करें। वह सभी व्यक्तियों को उनके कर्मों के अनुसार फल देता है। दयानन्द जातिप्रथा के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने जाति, धर्म, लिंग के सभी भेदों को अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि जाति का निर्धारण व्यक्ति के कर्म के आधार पर होना चाहिये। जो जिस तरह के कर्म करता है, उसे उसी कुल या सम्प्रदाय का माना जाना चाहिये। महात्मा गांधी ने जातिप्रथा के क्षेत्र में उनके योगदान की प्रशंसा करते हुए कहा ’स्वामी दयानन्द ने जो बहुत-सी अच्छी बातें हमें दीं, उनमें से एक है अस्पृश्यता के विरुद्ध उनकी शिक्षाएं।’ दयानन्दजी अंधविश्वास के भी कट्टर विरोधी थे। पण्डित जो जन्म-मृत्यु, जीवन-मरण, स्वर्ग-नरक की पोंगा पण्डियात सीधे-साधे मनुष्यों को बताते हैं और उनके साथ छल करते हैं वह अनुचित है। उनका कहना था कि इनपर विश्वास न करके सिर्फ अपने कर्मों पर विश्वास करें। वह समाज में व्याप्त सभी बुराइयों का प्रमुख कारण अज्ञानता व अशिक्षा को मानते थे। वे कहते थे कि अशिक्षा, गरीबी और दासता ये तीन बड़ी समस्याएँ हैं, जिनसे निपटना बहुत जरूरी है। विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए बहुत विरोधों के बावजूद वह दृढ़ संकल्पित रहे और इन तीनों बुराइयों को जड़ से समाप्त करने की ओर प्रयासरत रहे। उन्होंने शिक्षा पर जोर देते हुए लड़कियों को पढ़ाने की ओर भी विशेष ध्यान दिया। स्वामी जी ने अपने देशवासियों में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने पर विशेष बल दिया। उन्होंने वेदों के आधार पर अपने राष्ट्र का निर्माण करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि वेद ही भारत के धर्म, संस्कृति और सभ्यता के मूलस्त्रोत हैं। वे ही भारतीय चिंतन, दर्शन और ज्ञान का मूल आधार हैं और उन्हीं में हमें भारत को पुनर्जीवित करने की संजीवनी मिलेगी।

स्वामी दयानन्द ने समाज में फैली हर चुनौती पर गहरी चोट की और भरपूर कोशिश की कि इन बुराइयों को समाज से बिल्कुल समाप्त कर दिया जाये। इसके लिये उन्होंने भ्रमण किये और जगह-जगह जागरूकता फैलाने का काम किया। आज जो हम भारतवर्ष का स्वरूप देख रहे हैं जिसमें जातिप्रथा, बाल विवाह, सतीप्रथा मुख्य है, जो लगभग अब समाप्त-सी हो गई है, यह दयानन्द सरस्वती के प्रयासों का ही परिणाम है। लोगों में जागरूकता फैलाने, उनमें ज्ञान पैदा करने और व्याप्त बुराइयों को खत्म करने के लिये स्वामी जी ने जितनी यात्राएँ कीं, शायद ही किसी समाज सुधारक ने की हों। दयानन्द सरस्वती का एक बहुत ही प्रशंसनीय कार्य था- आर्य समाज की स्थापना। समय के साथ चलते हुए और शिक्षा के क्षेत्र में काम करके राष्ट्रीयता की प्रबल भावना का प्रसार करते हुए आर्य समाज आधुनिक भारत में एक बहुत बड़ी जीवंत शक्ति बन गया है। स्वामी दयानन्द ने भारत की तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रणालियों की समस्याओं का जो समाधान प्रस्तुत किया, उससे उन्होंने आधुनिक चिंतन की आधारशिला रखी। अपने अनूठे कार्यों के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती युवा पीढ़ी में हमेशा याद किये जाते रहेंगे।

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डॉ. अलका अग्रवाल
मेवाड़ ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन

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