भारत में एसिडिटी-संबंधी विकारों की चिंताजनक वृद्धि
गाजियाबाद। एसिडिटी से संबंधित विकार एक चिंताजनक स्वास्थ्य मुद्दा बन गया है जो भारतीय आबादी के एक बड़े भाग (10-30 प्रतिशत) को प्रभावित कर रहा है। इसके अतिरिक्त, भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में से एक, उत्तर प्रदेश एसिडिटी से संबंधित समस्याओं की व्यापकता में अग्रणी बनकर उभरा है। यह चिंताजनक प्रवृत्ति एक स्वस्थ राष्ट्र के लिए इन विकारों के कारणों, लक्षणों और प्रबंधन पर तत्काल ध्यान देने की मांग करती है।
एसिडिटी की बढ़ती घटनाओं और इनके प्रबंधन पर बोलते हुए, यशोदा हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट और ट्रांसप्लांट फिजिशियन डॉ. रविंदर सिंह भदोरिया ने कहा, “जीईआरडी सहित हाइपरएसिडिटी, भारतीय आबादी को तेजी से प्रभावित कर रही है, उत्तर प्रदेश में इसके अत्यधिक मामले सामने आ रहे हैं।
एसिडिटी की जटिलताओं को रोकने और उचित प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए मरीजों को सेल्फ मेडिकेशन (अपनी मर्जी से दवाईयां लेना) या ओवर-द-काउंटर (दवा की दुकान से दवाई लेना) जैसे उपचार का सहारा लेने के बजाय पेशेवर चिकित्सकों से परामर्श लेना चाहिए। उन्होंने बीमारी के प्रभावी प्रबंधन और समय पर दवाईयां लेने के महत्व पर भी जोर दिया।
डॉ. भदोरिया ने आगे कहा, एसिडिटी प्रबंधन के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखना आवश्यक है। कई मरीजों के लिए रैनिटिडिन एक पसंदीदा दवा साबित हुई है क्योंकि यह पेट में अतिरिक्त एसिड उत्पादन को प्रभावी ढंग से रोक देती है। यह विश्वसनीय दवा एसिडिटी से जुड़े लक्षणों से तुरंत राहत दिलाती है और इसे बिना डॉक्टर की सलाह के भी आसानी से दवा की दुकान से ले सकते हैं।
एसिडिटी से संबंधित विकार, जिसे गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी) या हार्टबर्न के रूप में भी जाना जाता है, ऐसा तब होता है जब पेट का एसिड वापस आहारनाल में आ जाता है, जिससे बेचैनी और जलन होती है। मसालेदार और तले हुए खाद्य पदार्थों, कार्बोनेटेड पेय पदार्थों और कुछ दवाओं के सेवन सहित आहार संबंधी अस्वास्थ्यकर आदतें, एसिडिटी से संबंधित समस्याओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। जीवनशैली के कारक, जैसे खान-पान का नियत समय न होना, तनाव और मोटापा, स्थिति को और गंभीर बना देती हैं।
बाजार में रैनिटिडिन की बिक्री 1981 से शुरू हुई और तब से यह एसिडिटी से संबंधित स्थितियों के लिए सबसे भरोसेमंद दवाओं में से एक रही है और पूरे भारत में लाखों मरीजों के उपचार के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
एसिडिटी से संबंधित विकारों के प्रभावी प्रबंधन पर विस्तार से बताते हुए, डॉ. अजय गुप्ता, वरिष्ठ सलाहकार, गैस्ट्रो एंड लिवर क्लिनिक, नेहरू नगर, गाजियाबाद ने सलाह दी, “एसिडिटी से संबंधित विकारों के प्रभावी प्रबंधन के लिए जीवनशैली में बदलाव और उचित दवा के संयोजन की आवश्यकता होती है। दवा लेने से पहले लोगों को चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए। कई दवाओं में से रैनिटिडिन पेट में एसिड उत्पादन को कम करके हार्ट बर्न और एसिड रिफ्लक्स के लक्षणों से बहुत जरूरी राहत प्रदान करती है। उचित दवा के अलावा, लोग स्वस्थ खान-पान की आदतें अपना सकते हैं, जिसमें मसालेदार और तले हुए खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना, देर रात खाने से परहेज करना और ध्यानपूर्वक खाना खाना सम्मिलित हैं। अपना स्वस्थ भार बनाए रखना और रिलैक्सेशन तकनीकों के माध्यम से तनाव का प्रबंधन करना भी एसिडिटी के लक्षणों को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
एसिडिटी से संबंधित विकारों के लक्षणों में सीने में जलन, एसिड या भोजन का वापस आना, निगलने में कठिनाई, लगातार खांसी और आवाज का भारी होना शामिल हो सकते हैं। यदि इनका समय पर उपचार न कराया जाए तो, लंबे समय से चली आ रही एसिडिटी गंभीर जटिलताओं को जन्म दे सकती है, जैसे कि कुछ स्थानों/जगहों पर आहारनाल का संकरा हो जाना। खाना-पीना मुश्किल हो जाता है और यह स्थिति शरीर में पानी की कमी और वजन कम होने का कारण बन सकती है।
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वरिष्ठ संवाददाता श्री राम की रिपोर्ट