गुरु पूर्णिमा पर विशेष…..
गाजियाबाद। व्यास पूर्णिमा के शुभ अवसर पर विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा के पीठाधीश्वर ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने बताया कि सब गुरु चेला कोई नहीं” यह एक प्रसिद्ध पंक्ति है जो गुरु-शिष्य परंपरा और आध्यात्मिक ज्ञान के संदर्भ में उपयोग होती है। इसका अर्थ है कि “कोई भी पूर्ण गुरु नहीं है और न ही कोई पूर्ण शिष्य है”, या “गुरु और शिष्य दोनों ही एक ही सिक्के के पहलू हैं, दोनों ही सीखने और सिखाने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं”।
भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान के समान माना जाता है, क्योंकि गुरु ही अज्ञान के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। गुरु, शिष्य को सही मार्ग दिखाते हैं और उसे सांसारिक दुखों से मुक्ति दिलाते हैं। गुरु की महिमा का वर्णन शास्त्रों और संतों द्वारा किया गया है, और इसे अनंत बताया गया है। गुरु की महिमा को समझने के लिए, हमें गुरु के महत्व को समझना होगा, गुरु वह व्यक्ति है जो हमें ज्ञान, दिशा और जीवन के सही उद्देश्य को समझने में मदद करता है। वह हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम बनाता है और हमें आत्म-जागरूकता की ओर ले जाता है। हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है।
भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है। संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु को महत्व देने के लिए ही महान गुरु वेद व्यासजी की जयंती पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। इस पर्व को हिन्दू ही नहीं बल्कि जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लोग भी मनाते हैं। माता और पिता अपने बच्चों को संस्कार देते हैं, पर गुरु सभी को अपने बच्चों के समान मानकर ज्ञान देते हैं। गुरु और शिक्षकों का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। एक विद्यार्थी के जीवन में गुरु अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। गुरु के ज्ञान और संस्कार के आधार पर ही उसका शिष्य ज्ञानी बनता है। गुरु की महत्ता को महत्व देते हुए प्राचीन धर्मग्रन्थों में भी गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान बताया है। गुरु मंदबुद्धि शिष्य को भी एक योग्य व्यक्ति बना देते हैं। संस्कार और शिक्षा जीवन का मूल स्वभाव होता है। इनसे वंचित रहने वाला व्यक्ति बुद्दू होता है। गुरु के ज्ञान का कोई तोल नहीं होता है। हमारा जीवन गुरु के अभाव में शून्य होता है। गुरु अपने शिष्यों से कोई स्वार्थ नहीं रखते हैं, उनका उद्देश्य सभी का कल्याण ही होता है। गुरु को उस दिन अपने कार्यो पर गर्व होता है, जिस दिन उसका शिष्य एक बड़े ओहदे पर पहुंच जाता है।
प्राइवेट चिकित्सक वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय सचिव डॉक्टर कुमार देवाशीष ओझा ने विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा / प्राइवेट चिकित्सक वेलफेयर एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान का व्यास पूर्णिमा के अवसर पर सानिध्य पाकर आशीर्वाद प्राप्त कर अपने आपको गौरवान्वित किया। डॉ कुमार देवाशीष ओझा ने बताया कि हर किसी के जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। मनुष्य को गुरु का महत्व समझना चाहिए और जीवन पर्यंत उनका सम्मान करना चाहिए। उनके आशीर्वाद के बगैर मनुष्य अधूरे हैं। गुरु के प्रति हमेशा शिष्य के मन में श्रद्धा होनी चाहिए, तभी से अपने कार्य के बारीकियों को भलीभांति सीख सकते हैं।
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वरिष्ठ पत्रकार श्री राम की रिपोर्ट