संस्कृति, इतिहास और हमारी वैश्विक पहचान भारतीय संस्कृति की सबसे जीवंत और लोकप्रिय परंपराओं में से एक है रामलीला। यह केवल एक धार्मिक नाट्य रूपक नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने वाला, मूल्य सिखाने वाला और संस्कृति को जीवित रखने वाला एक उत्सव है। भारत में इसकी जड़ें गहरी हैं, परंतु इसकी शाखाएँ आज पूरी दुनिया में फैल चुकी हैं। विदेशों में रामलीला का मंचन प्रवासी भारतीयों की आस्था, संस्कार और सांस्कृतिक चेतना का परिचायक है।
रामलीला की उत्पत्ति और भारत में स्वरूप
रामलीला का अर्थ है राम की लीला, अर्थात श्रीराम के जीवन की कथा का मंचन। इसकी उत्पत्ति तुलसीदास कृत रामचरितमानस से मानी जाती है। 16वीं शताब्दी में यह परंपरा संगठित रूप से शुरू हुई और 17वीं सदी तक पूरे उत्तर भारत में लोकप्रिय हो गई। भारत के कई शहरों में आज भी भव्य रामलीलाएँ होती हैं। वाराणसी के रामनगर की रामलीला तो 31 दिनों तक चलती है, जिसमें पूरा शहर थियेटर का रूप ले लेता है। इसी तरह दिल्ली, अयोध्या, वृंदावन और मथुरा की रामलीलाएँ भी प्रसिद्ध हैं। वर्ष 2008 में यूनेस्को ने रामलीला को “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर” की सूची में शामिल कर इसकी वैश्विक महत्ता को मान्यता दी।
प्रवासी भारतीय और विदेशों में रामलीला का आरंभ
19वीं शताब्दी में जब भारतीय मजदूर फ़िजी, मॉरीशस, त्रिनिदाद, सूरीनाम, गुयाना और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में गए, तो वे अपनी धार्मिक परंपराएँ साथ लेकर गए। मंदिर, हवन, भजन, कीर्तन और रामायण पाठ के साथ उन्होंने रामलीला का मंचन भी प्रारंभ किया। यह उनके लिए केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि अपनी पहचान और संस्कृति को जीवित रखने का माध्यम था।
देशवार रामलीला का स्वरूप
1. त्रिनिदाद और टोबैगो-यहाँ रामलीला की परंपरा 19वीं शताब्दी से है। पूरे गाँव के लोग इसमें शामिल होते हैं, और कभी-कभी राजनीतिक व सामाजिक मुद्दों को भी इसमें प्रतीकात्मक ढंग से पिरोया जाता है। आज भी यह प्रवासी भारतीयों की आस्था और पहचान का अभिन्न हिस्सा है।
2. सूरीनाम और गुयाना-लगभग 150 साल पहले भारतीय प्रवासियों ने यहाँ रामलीला का मंचन शुरू किया। यह उत्सव वहाँ धार्मिक होने के साथ-साथ सांस्कृतिक मेल-मिलाप का प्रतीक बन गया है।
3. मॉरीशस और फ़िजी-इन द्वीपीय देशों में भी भारतीय प्रवासियों ने रामलीला परंपरा को स्थापित किया। फ़िजी की रामलीलाओं में भोजपुरी और अवधी भाषा का प्रभाव स्पष्ट दिखता है।
4. दक्षिण अफ्रीका-यहाँ भारतीय मूल के लोगों ने रामायण और रामलीला दोनों को लोकप्रिय बनाया। आज भी बड़े मंदिरों और सांस्कृतिक सभाओं में रामलीला का मंचन होता है।
5. अमेरिका, कनाडा और यूरोप-न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी, कैलिफ़ोर्निया, लंदन और पेरिस जैसे शहरों में भारतीय संगठन हर साल भव्य रामलीला आयोजित करते हैं। यहाँ केवल भारतीय ही नहीं, बल्कि स्थानीय लोग भी रुचि लेकर अभिनय और दर्शक के रूप में हिस्सा लेते हैं।
6. थाईलैंड, कंबोडिया और इंडोनेशिया-इन देशों में रामायण पहले से ही संस्कृति का हिस्सा रही है। थाईलैंड में इसे रामाकियन के रूप में जाना जाता है और राजकीय स्तर पर मंचन किया जाता है। इंडोनेशिया के बाली द्वीप में रामायण कथा नृत्य-नाट्य के रूप में प्रस्तुत होती है।
विदेशों में रामलीला के स्वरूप और चुनौतियाँ
विदेशों में मंचन करते समय कई चुनौतियाँ आती हैंः
1.भाषा की समस्या-हिंदी या अवधी का ज्ञान हर प्रवासी पीढ़ी को नहीं होता, इसलिए कई जगह अंग्रेज़ी या स्थानीय भाषाओं में भी संवाद बोले जाते हैं।
2.संसाधन और मंचन शैली-छोटे समुदायों में मंच और तकनीकी साधन सीमित होते हैं।
3.सांस्कृतिक अनुकूलन-कुछ जगह प्रस्तुति में स्थानीय कला शैलियों का भी समावेश हो जाता है। फिर भी प्रवासी भारतीयों ने इन कठिनाइयों को अवसर में बदला और रामलीला को एक वैश्विक रंगमंचीय उत्सव बना दिया।
रामलीलाः वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर
रामलीला अब केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं रही। यह प्रवासियों के लिए सांस्कृतिक पहचान का आधार है। पीढ़ियों को जोड़ने का माध्यम है। भारत और विश्व समुदाय के बीच सांस्कृतिक सेतु का कार्य करती है। इसकी लोकप्रियता ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय संस्कृति का दायरा सीमाओं से परे है और इसका आकर्षण सार्वभौमिक है।
विश्व में सनातनियों की संख्या
रामलीला केवल हिंदू समाज की परंपरा है, इसलिए इसका संबंध सनातनियों की वैश्विक उपस्थिति से भी है। वर्तमान में विश्व में लगभग 1.2 अरब (120 करोड़) हिंदू हैं। यह कुल विश्व जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा है। भारत में लगभग 94 प्रतिशत हिंदू रहते हैं। नेपाल, बांग्लादेश, इंडोनेशिया (बाली), मॉरीशस, फ़िजी, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में भी बड़ी संख्या में हिंदू समुदाय मौजूद है। यह आंकड़े बताते हैं कि विश्व स्तर पर हिंदू समाज की मजबूत उपस्थिति है, और यही कारण है कि रामलीला जैसी परंपराएँ विदेशों में जीवित रहकर और भी समृद्ध हो रही हैं।
विदेशों में रामलीला का मंचन प्रवासी भारतीयों की सांस्कृतिक जीवटता और धार्मिक आस्था का अद्भुत उदाहरण है। चाहे वह कैरेबियाई देशों का गाँव हो, अमेरिका का कोई महानगर या थाईलैंड का राजदरबार, राम की कथा और उनकी लीला हर जगह लोगों को आकर्षित करती है। यह परंपरा केवल भारतीयों के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक समाज के लिए भी सत्य, धर्म और आदर्श जीवन मूल्यों का संदेश देती है। रामलीला ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय संस्कृति केवल भारत की धरोहर नहीं, बल्कि पूरे विश्व की साझा धरोहर है।