आत्ममुग्धता लेखन में ठहराव उत्पन्न करती है : डॉ. कीर्ति काले
गाजियाबाद। लोकप्रियता की होड़ ने लोगों की रचना धर्मिता और रचना प्रक्रिया को इतना अधिक प्रभावित कर दिया है कि अधकचरा लेखन ही आत्म संतुष्टि का पर्याय होता जा रहा है। रही सही कसर फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे पटल पूरी कर देते हैं। जहां आभासी प्रशासक झूठी वाहवाही का प्रपंच रच कर रचनाकारों को महानता के भ्रम में रखते हैं। सुप्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय कवयित्री डॉ. कीर्ति काले ने बतौर अध्यक्ष ‘बारादरी’ को संबोधित करते हुए उक्त उद्गार प्रकट किए। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी में सीखने का संस्कार खत्म होता जा रहा है। अधिकांश नए रचनाकारों में ठहराव आ गया है। ‘बारादरी’ जैसे मंच नवांकुरों के लिए एक पाठशाला हैं।
सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल नेहरू नगर में आयोजित ‘बारादरी’ को संबोधित करते हुए जर्मनी से आईं मुख्य अतिथि डॉ. योजना साहू जैन ने कहा कि उन्हें भारतीय होने पर गर्व है और वह स्वयं को ‘ग्लोबल सिटिजन’ समझती हैं। डॉ. कीर्ति काले ने मां गंगा के”गीत दोहराती हूं मां गंगा की पावन पुण्य कहानी को’ सुना कर श्रोताओं को रोमांचित कर दिया। उनके गीत ‘द्वार देहरी में ठनी सी है, अल्पना भी अनमनी सी है…’ पर भी श्रोताओं की भरपूर दाद मिली। डॉ. योजना साहू जैन के शेर ‘न किसी से कोई गिला रखना फासला इतना दरमियां रखना, तोड़ा है दिल बड़ी तबीयत से नाम उनका मेरी दुआ में रखना’ भी खूब सराहे गए। कार्यक्रम के विशेष आमंत्रित अतिथि संजय मिश्रा ‘शौक’ ने कहा ‘मैंने जब उससे कहा तुम मेरा चेहरा देखो, चांद ने फेंक दिया शब का दुपट्टा देखो’, पर भी दाद बटोरी।
संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने सूफियाना अंदाज में अपनी बात कुछ यूं राखी ‘जिधर से आ गए उस सिम्त मुड़ के जाना क्या, वो नर्म रोहे, नदी का मगर ठिकाना क्या, उसे तो मंजिल ए मकसूद तक पहुंचना है, नदी का दोनों किनारो से दोस्ताना क्या?’ पर खूब दाद बटोरी। संस्था की संस्थापिका डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ ने आदमी आदमी के बीच बढ़ रही दूरियों को कम करने पर बल देते हुए कहा ‘न हो सोचना, न बहाना हो, न पूछना न बताना हो, एक घर हो जहां मेरा बेबाक आना जाना हो, न तारीख ढूंढनी हो न वक्त देखना हो, खास दिन का बहाना न रस्म निभाना हो, वो दर मुझको न जहां सांकल खटखटाना हो।’ कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए असलम राशिद ने फरमाया ‘दुःख हमारा कम करेंगे आप रहने दीजिए, आग को शबनम करेंगे आप रहने दीजिए।’
करीब 6 घंटे से अधिक समय तक चली महफिल में सुरेंद्र सिंघल, मासूम गाजियाबादी, उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’, अंजू जैन, तारा गुप्ता, अनिमेष शर्मा, रवि यादव, डॉ. सुधीर त्यागी, सुरेंद्र शर्मा, सोनम यादव, पुष्पा गोयल, पावनी कुमारी, विवेक मालवीय, संजीव शर्मा, टेकचंद, अजय त्यागी, प्रदीप भट्ट, वागीश शर्मा, अनिल मीत, मंजु मन, इंद्रजीत सुकुमार, वीणा दरवेश, देवेंद्र देव, डॉ. बीना शर्मा, वी. के. शेखर, मनीषा गुप्ता, इकरा अंबर, यश शर्मा की रचनाएं भी सराही गईं। इस अवसर पर सत्यनारायण शर्मा को साहित्य के क्षेत्र में आजीवन योगदान के लिए विशेष रूप से सम्मानित किया गया।
इस मौके पर डॉ. महकार सिंह, राधारमण, आलोक यात्री, उत्कर्ष गर्ग, रंजन शर्मा, नंदिनी शर्मा, आभा बंसल, प्रमोद सिसोदिया, रीना अग्रवाल, अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव, स्वप्ना, हेमलता शर्मा, वीरेंद्र सिंह राठौड़, सुमन गोयल, राष्ट्रवर्धन अरोड़ा, विश्वेंद्र गोयल, कुलदीप, सुशील शर्मा, नीलम सिंह, तिलक राज अरोड़ा, अंजलि, अतुल जैन, किशन लाल भारतीय, दीपा गर्ग, आशीष मित्तल, सुभाष अखिल, देवेंद्र गर्ग, निखिल, कविता, डी. डी. पचौरी, ओंकार सिंह, अरुण कुमार यादव, नूतन यादव, राम प्रकाश गौड़, निकिता कराया, शशिकांत भारद्वाज व खुश्बू सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।
————————–
वरिष्ठ पत्रकार श्री राम की रिपोर्ट