रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर बीके शर्मा हनुमान ने दी श्रद्धांजलि

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी..मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था

गाजियाबाद। विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा द्वारा गाजियाबाद रेलवे स्टेशन के पास रानी लक्ष्मी बाई को पुष्पांजलि, भावांजलि श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।

इस अवसर पर संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मर्षि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य और वीरता पर लिखी प्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की ये यादगार कविता आज भी युवाओं को देशभक्ति के जज़्बे से भर देने का काम करती है। आज (18 जून) नारी शक्ति की मिसाल देने वाली उसी रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि है।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ऐसी नायिका रहीं जिनके पराक्रम और साहस का जिक्र आज भी समय समय पर किया जाता है। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजी हुकूमत के आगे कभी झुकना स्वीकार नहीं किया और आखिरी दम तक झांसी की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़ती रहीं। 18 जून के दिन ही उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था।

हनुमान ने यह भी बताया कि रानी लक्ष्मीबाई का पराक्रम और साहस आज की नारियों के लिए प्रेरणादायी है। रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को बनारस के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध बिगुल बजाने वाले वीरों में से एक थीं। बचपन में उनका नाम मणिकर्णिका था और प्यार से उन्हें मनु कहकर बुलाया जाता था। बचपन से ही मनु शस्त्र-शास्त्र की शिक्षा लेने लगी थी। नाना साहेब और तात्या टोपे से उन्होंने घुड़सवारी और तलवारबाजी के गुर सीखे थे।

साल 1842 में मनु का विवाह झांसी के नरेश गंगाधर राव नवलकर से हुआ। तब वह सिर्फ 12 साल की थीं। विवाह के बाद उन्हें लक्ष्मीबाई नाम मिला। विवाह के बाद उन्होंने राजकुंवर दामोदर राव को जन्म दिया लेकिन कुछ माह बाद ही उनके बच्चे का निधन हो गया। गंगाधर राव ने तब अपने छोटे भाई के पुत्र को गोद लिया और उसे दामोदर राव नाम दिया। कुछ समय बाद खराब स्वास्थ्य के चलते गंगाधर राव का निधन हो गया। अंग्रेज किसी भी तरह से झांसी को ब्रिटिश कंपनी का हिस्‍सा बनाने की साजिश में लगे थे। उन्‍होंने दामोदर राव को झांसी का वारिस मानने से इनकार कर दिया था।इसके बाद झांसी की बांगडोर लक्ष्मीबाई के हाथों में आ गई।

तब अंग्रेज एक के बाद एक भारतीय रियासतों को अपने कब्जे में ले रहे थे। लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने साफ कह दिया था – ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’। महज 29 साल की उम्र में रानी लक्ष्मीबाई कई दिनों तक अपनी छोटी सी सेना के साथ अंग्रेजों से युद्ध लड़ती रहीं। इस दौरान उन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। उनकी वीरता आज भी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इस अवसर पर विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पंडित आरसी शर्मा, पंडित आर पी शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष आलोक चंद शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष कपिल पंडित राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, संदीप त्यागी रसम, जितेंद्र जिंदल, प्रवीण कुमार, अशोक भारतीय, प्रेमलता सूरी, शिवकुमार शर्मा, दिलीप कुमार सिंह, संजय कुमार सिंह, श्यामलाल सरकार, डॉ एस के मिश्रा, राजकुमार, विनोद कुमार, छोटेलाल कनौजिया, मौजूद थे।

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वरिष्ठ संवाददाता श्री राम की रिपोर्ट

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